मैनें जीना सीख लिया है
तुमनें सोचा था सुलगता धुवां धुवां होगा
बिखर जायेगा खुद्-ब-खुद खुद से
राख हो जायेगा बुझेगा जब..
तुमने सोचा न था कि अंबर है
मेरी आँखों में आ के ठहरा सा
तुमने सोचा न था कि सागर है
मेरे दिल ही में एक गहरा सा
तुमनें तो आग दे के देख लिया
खुश हुए दिल कि जल गया होगा..
भाप बन कर के उड गया सागर
और बादल बना गमों का सा
आँख से फिर बरस पडा सावन
देख लो बुझ गया है मेरा मन..
*** राजीव रंजन प्रसाद
१२.११.१९९५