Thursday, August 03, 2017

नमक के बोरे में आक्रांता (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 46)


राजा दलपतदेव (1731-1774 ई.) के समय तक मराठा राज्य की सीमा बस्तर से लग गयी थी। मराठा शासकों ने अपनी विस्तारवादी नीति के तहत पहले रतनपुर पर विजय हासिल की तथा इसके पश्चात नीलू पंडित के नेतृत्व में वर्ष 1756 को बस्तर पर आक्रमण कर दिया। मराठा सरदार नीलू पंडित को नीलकंठ पंडित के नाम से भी जाना जाता है जबकि लौहण्डीगुडा तरंगिणी के लेखक महाराजा प्रवीर उसे नीलू पंथ सम्बिधित करते हैं। आक्रमण होते ही राजा दलपत देव ने योजना के अनुसार अपनी सेना को जंगल की ओर हटने का निर्देश दिया। मराठा सेना बिना रक्तपात के मिली जीत से उत्साहित हो गयी। इसी बीच, दलपतदेव के सैनिकों ने मराठा सेना को बाहर से मिलने वाली मदद के सारे रास्ते बंद कर दिये। पूरी तैयारी के बाद भयानक आक्रमण किया गया। मराठे बुरी तरह ध्वस्त हुए। नीलू पंड़ित एक बंजारे की सहायता से नमक के बोरे में छिप कर भाग गया।

दि ब्रेट (1909) विवरण देते हैं कि नीलू पंडित ने एक बार पुन: बस्तर पर शक्तिशाली आक्रमण लिया था। निस्संदेह मराठा सेना बस्तर की तुल्ना में अधिक ताकतवर और प्रशिक्षित थी किंतु वे इस अंचल के भूगोल के आगे विवश थे। युद्ध जीता गया। दलपत देव के प्रत्याक्रमण का अंदेशा पाते ही इस बार सतर्क नीलू पंडित लूट खसोट से ही संतुष्ट हो कर भाग निकला। यद्यपि उसने महारानी को कैद कर लिया, उन्हें जैपोर मार्ग से पुरी ले जाया गया जहाँ उनकी मृत्यु हो गयी। सभी विवरणों को विवेचनात्मक दृष्टि से देखें तो यह ज्ञात होता है कि अनेक कोशिशों के बाद भी मराठा शासक राजा दलपत देव को अपनी आधीनता स्वीकार करने के लिये बाध्य नहीं कर सके थे। लगातार होने वाले मराठा आक्रमणों ने ही राजा दलपतदेव को अपनी राजधानी बस्तर से बदल कर जगदलपुर ले जाने एवं उसकी मजबूत किलेबंदी करने के लिये बाध्य कर दिया था।      

- राजीव रंजन प्रसाद 
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