Tuesday, August 08, 2017

विजय-पराजय (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 50)


एक बड़ी विजय कैसे निर्णायक पराजय में बदल जाती है इसका उदाहरण भूमकाल आंदोलन का आखिरी चरण है। आंदोलन के दमन के लिये 24 फरवरी 1910 की सुबह मद्रास और पंजाब बटालियन जगदलपुर पहुँच गयी। जबलपुर, विजगापट्टनम, जैपोर और नागपुर से भी 25 फरवरी तक सशस्त्र सेनायें जगदलपुर आ पहुँची थी। राजधानी की सड़कों पर फ्लैग मार्च किया गया। यह एक अपराजेय ताकत थी। विद्रोही राजधानी और आसपास से पीछे हटने को बाध्य किये गये। ब्रिटिश कमांडर गेयर तक खबर पहुँच गयी कि विद्रोही अब उलनार गाँव के पास एकत्रित हो रहे हैं। आधी रात को आदिवासियों पर कायराना-अंग्रेज आक्रमण किया गया। भोर की पहली किरण के साथ ही युद्ध समाप्त हो सका। अलनार गाँव से विद्रोही पलायन कर गये। विद्रोहियों के तितर बितर होते ही दि ब्रेट ने छब्बीस-फरवरी को ताडोकी पर हमले का आदेश दे दिया। आधे घंटे की गोलाबारी के बाद ही लाल कालेन्द्रसिंह गिरफ्तार किये जा सके। उनके मकान में आग लगा दी गयी। पाँच-मार्च को तैयारी के साथ राजमाता सुबरन कुँअर के आवास पर छापा मारा गया। राजमाता को गिरफ्तार कर राजमहल लाया गया; उन्हें नजरबंद कर दिया गया। 

25 मार्च, 1910 को उलनार भाठा के निकट सरकारी सेना का पड़ाव था। गुण्डाधुर को जानकारी दी गयी कि गेयर भी उलनार के इस कैम्प में ठहरा हुआ है। डेबरीधुर, सोनू माझी, मुस्मी हड़मा, मुण्डी कलार, धानू धाकड़, बुधरू, बुटलू जैसे राज्य के कोने कोने से आये गुण्डाधुर के विश्वस्त क्रांतिकारी साथियों ने अचानक हमला करने की योजना बनायी। एक घंटे भी सरकारी सेना विद्रोहियों के सामने नहीं टिक सकी और भाग खड़ी हुई। लेकिन उसी रात यह विजय अंतिम पराजय में बदल गयी। किसी लालच के वशीभूत गुण्डाधुर का ही एक विश्वासपात्र साथी सोनू माझी, गेयर से मिल गया तथा उसकी सूचना के आधार पर विद्रोही सेना का दमन कर दिया गया। सुबह इक्क्सीस लाशें माटी में शहीद होने के गर्व के साथ पड़ी हुई थी। गुण्डाधुर को पकड़ा नहीं जा सका लेकिन डेबरीधूर और अनेक प्रमुख क्रांतिकारी पकड़ लिये गये। गेयर बाजार में नगर के बीचो-बीच इमली के पेड़ में डेबरीधूर और माड़िया माझी को लटका कर फाँसी दी गयी। इसके साथ ही महान भूमकाल कभी न भुलायी जाने वाली दास्तान बन कर इतिहास के पन्नों में अंकित हो गया। 

- राजीव रंजन प्रसाद 

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